क्या मध्यप्रदेश में प्रत्याशियों के चेहरे बदलकर बड़ी गलती कर रही है कांग्रेस ?

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Harish Divekar
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क्या मध्यप्रदेश में प्रत्याशियों के चेहरे बदलकर बड़ी गलती कर रही है कांग्रेस ?

BHOPAL. प्रत्याशियों के नाम डिक्लेयर होने के बाद अब कांग्रेस बीजेपी बगावत की आग झेल रही हैं। वैसे तो हर चुनाव में लिस्ट जारी होने के बाद इस आग का भड़कना तय होता है, कोई पॉलिटिकल दल ऐसा कोई फायर ब्रिगेड तैयार नहीं कर सका जो इस आग को बुझा सके, लेकिन इस बार दोनों पार्टियां खासतौर से कांग्रेस, इस आग को बुझाने के लिए पोर्टेबल फायर एक्सटेंगविशर का इंतजाम जरूर कर रही है, लेकिन दोनों दलों को ये बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि आग बुझाने की कोशिश बैक फायर कर सकती है। जिसमें 2023 का रण जीतने की उनकी सारी कोशिश स्वाह भी हो सकती है, जिस डैमेज कंट्रोल की कोशिश में बीजेपी और कांग्रेस दोनों नए फैसले लेने की तैयारी में हैं हो सकता है कि वही फैसले उनके लिए जी का जंजाल बन जाएं।

बगावत की आग में जल रही कांग्रेस और बीजेपी

कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की पूरी 230 सीटों पर कैंडिडेट डिक्लेयर कर चुनावी तस्वीर तो क्लियर कर दी, लेकिन खुद की रणनीति ही उसमें धुंधली दिखाई देने लगी है। इस टिकट वितरण से पहले इस बात का जबरदस्त शोर था कि दोनों ही दलों ने आंतरिक सर्वे करवाएं हैं और जांच परख कर टिकट दिया गया है, लेकिन जो लिस्ट सामने आई उसके बाद से ही दोनों दल बगावत की आग में जूझ रहे हैं। जिसका असर ये हुआ कि पहली लिस्ट जारी करने के पहले ही सप्ताह में कांग्रेस को अपने तीन फैसले बदलने पड़े। और अब चार सीटों पर चेहरे बदल दिए हैं। ये सिलसिला सिर्फ इतने पर ही और सिर्फ कांग्रेस में ही थमता नहीं दिखाई दे रहा। इस आग पर काबू पाने के लिए अब कांग्रेस कुछ और चेहरे बदलने की तैयारी में है और बीजेपी भी कुछ इसी थीम पर आगे बढ़ने की कोशिश में है। दोनों दलों को दशहरे के गुजरने का इंतजार था। जिसके बाद चुनावी बिसात पर फिर बड़े उल्टफेर की तैयारी है।

बेकार साबित हुए टिकट वितरण के सर्वे

जिन सर्वे पर भरोसा कर कांग्रेस ने टिकट बांटे हैं, वही सर्वे अब कांग्रेस के लिए मुश्किल बन गए हैं। खुद दिग्विजय सिंह ने ये गलती मान ली है कि सर्वे की वजह से इतनी मुश्किलें हुई हैं, बगावत की आग तो पार्टी को झुलसा ही रही है दिग्विजय सिंह का कहना है कि अब विषपान की तैयारी है। डैमेज कंट्रोल के लिए कुछ और सीटों पर चेहरे बदलने की भी पूरी तैयारी है। इस नए मंथन के बाद कांग्रेस को उम्मीद है कि जीत का अमृत से भरा प्याला जरूर निकलेगा, लेकिन मामला उल्टा भी पड़ सकता है। चुनावी पंडितों की मानें तो कांग्रेस एक घर संभालेगी तो दूसरा उसी घर में आग लगाने की तैयारी कर लेगा, हो सकता है डैमेज कंट्रोल की कोशिश, बागियों के गुस्से से ज्यादा भारी पड़ जाए।

हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे...

टिकट वितरण के बाद प्रदेश में बागियों का हाल कुछ ऐसा है जैसे ऐलान कर रहे हों कि हम भी खेलेंगे वर्ना खेल बिगाड़ेंगे। दिलचस्प बात ये है कि इन बागियों के तेवर से इस बार सियासी दल दबाव में आ रहे हैं। अमूमन ऐसा होता है कि टिकट वितरण के बाद वंचित दावेदारों की नाराजगी सामने आती है। लेकिन दल अपने फैसले पर कायम रहते हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस ने दबाव में आकर पहले ही तीन जगह के टिकट बदल दिए, और ये सिलसिला आगे भी जारी रहने की तैयारी है। प्रदेश की करीब 47 सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों का विरोध हो रहा है। 5 सीटों पर तो खुली बगावत हो रही है। सोमवार को भोपाल में कमलनाथ के बंगले पर शुजालपुर और होशंगाबाद विधानसभा क्षेत्र के नाराज कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया।

कहां किसका विरोध और कौन मांग रहा टिकट

शुजालपुर सीट से कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी रामवीर सिंह का विरोध किया। यहां टिकट की दावेदारी कर रहे योगेंद्र सिंह बंटी बना के समर्थक प्रदर्शन किया, समर्थकों ने उनके लिए टिकट की मांग की हैं। होशंगाबाद सीट पर बीजेपी से आए गिरिजाशंकर शर्मा को टिकट देने पर नाराजगी है। यहां कार्यकर्ता चंद्रगोपाल मलैया को टिकट देने पर जोर दे रहे हैं, शर्मा परिवार को लेकर होशंगाबाद सीट पर नाराजगी बताई जा रही है। शिवपुरी से वीरेंद्र सिंह रघुवंशी को टिकट दिया जा सकता है। पिछोर में तीसरी बार प्रत्याशी बदल कर वापस केपी सिंह को भेजा सकता है। इससे पहले 15 अक्टूबर को जारी पहली सूची में शैलेंद्र सिंह को पिछोर से टिकट दिया गया था। 22 अक्टूबर को शैलेंद्र का टिकट ड्राप कर अरविंद सिंह लोधी को टिकट दे दिया गया। केपी इस सीट से 6 बार से विधायक हैं।

कांग्रेस ने चार सीटों पर बदले प्रत्याशी

भारी विरोध के बाद आखिरकार कांग्रेस ने फैसला लिया और चार और सीटों पर अपने प्रत्याशी बदल दिए। सुमावली में कुलदीप सिकरवार की जगह अजब सिंह कुशवाहा, पिपरिया में गुरु चरण खरे की जगह वीरेंद्र बेलवंशी, बड़नगर में राजेंद्र सिंह सोलंकी की जगह मुरली मोरवाल और जावरा में हिम्मत श्रीमाल की जगह वीरेंद्र सिंह सोलंकी को टिकट दिया गया है। बता दें कि दिग्विजय सिंह ने पहले ही कहा था कि रणदीप सुरजेवाला ने उन्हें बागियों को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। साथ ही ये भी मान लिया गया था कि कुछ जगह पर टिकट बदले जा सकते हैं। जिसके बाद कांग्रेस ने उनके नामों की लिस्ट जारी कर ही दी।

बीजेपी ने नहीं लिया कांग्रेस जैसा कोई फैसला

बगावत की आग कुछ 22 सीटों पर बीजेपी भी झेल रही है, लेकिन बीजेपी ने अब तक कांग्रेस जैसा प्रत्याशी बदलने का कोई फैसला नहीं लिया है। कुछ सीटों पर बगावत खुलकर सामने है और दलबदल की कवायद भी शुरु हो गई है। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह ने बीजेपी को झटका देते हुए बहुजन समाज पार्टी ज्वॉइन कर ली, वे अपने बेटे राकेश सिंह के लिए मुरैना से टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने यहां से रघुराज कंसाना को मौका दिया है। टीकमगढ़, पवई, भोपाल दक्षिण पश्चिम, त्यौंथर, जबलपुर उत्तर, उज्जैन उत्तर, बुरहानपुर, जोबट, अलीराजपुर, काला पीपल, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, अटेर, रैगांव, नागौद, वारासिवनी, होशंगाबाद, भिंड, महू, मनावर, महेश्वर और देपालपुर पर प्रत्याशी का विरोध हो रहा है। इंदौर के पूर्व विधायक अश्विन जोशी भी तीन नंबर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने उतर सकते हैं। पवई विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी का टिकट बदलने के लिए पार्टी नेता संजय नगायच ने कुछ दिन का अल्टीमेटम दिया है। हालांकि बीजेपी अब तक ऐसे किसी दबाव में न आने का दावा ही कर रही है।

अपने फैसलों को लेकर कन्फ्यूजन में कांग्रेस

बगावत के बाद कांग्रेस पूरी तरह से डैमेज कंट्रोल में जुटी हुई है। इस कदम को चुनावी पंडित और ज्यादा नुकसानदायी मानते हैं। चुनावी पंडितों की मानें तो टिकट देने के बाद चेहरा बदलना ये जाहिर करता है कि खुद पार्टी ही अपने फैसलों को लेकर कंफ्यूज है। जिसका मैसेज मतदाता के बीच गलत जाता है। दूसरा असर ये होता है कि जिसे पहले टिकट मिल चुका होता है, वो प्रत्याशी टिकट कटने के बाद ज्यादा नाराज हो सकता है और उसके समर्थक भी पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसका खामियाजा कांग्रेस को बहुत ज्यादा भुगतना पड़ सकता है। फिलहाल नामाकंन की आखिरी डेट गुजरने में अभी वक्त है, उससे पहले चेहरा बदलने के कुछ और फैसले नजर आएं तो भी ताज्जुब नहीं होगा।

30 अक्टूबर तक कुछ और सीटों पर बदल सकती तस्वीर

चार चार सर्वे या चार चार कंफ्यूजन सर्वे के आधार पर टिकट बांटने वाली कांग्रेस की लिस्ट और बदलते फैसले देखकर ये सवाल उठना लाजमी है। कांग्रेस इससे पहले तक अपने क्षत्रपों और समर्थकों की राय के आधार पर फैसले लेती रही है। इस बार बीजेपी की चाल चलने की कोशिश की तो उसी में उलझ कर रह गई। सात सीटों पर कांग्रेस ने चेहरे बदल दिए हैं, 30 अक्टूबर तक कुछ और सीटों पर तस्वीर बदल सकती है, अब तक बीजेपी को नर्वस बता रही कांग्रेस क्या जीत को लेकर खुद कंफ्यूज है या फिर ये नेताओं में तालमेल की कमी की एक और बानगी नजर आ रही है।

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